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मानवीय संवेदना भी चकनाचूर हो गयीं जब पिता के शव को रिक्शे पर लाद कर शमशान ले गयीं बेटियां

भुवनेश्वर। हिंदू समाज में किसी भी मृतक को चार लोगों का कंधा मिलने का रिवाज सदियों से चला आ रहा है। अपना खास नहीं होने पर परिजन और अन्य रिश्तेदार उसके अंतिम संस्कार के लिए बढ़चढ़ आगे आते थे। लेकिन ओडिशा में आर्थिक तंगी और सामाजिक बहिष्कार ने लोगों की मानवीय संवेदना को भी चकनाचूर करके रख दिया है। प्रदेश के बौद्ध और झारसुगुड़ा जिले में हुई इसी तरह की दो घटनाओं के बाद ढेंकानाल जिले में भी आर्थिक तंगी के चलते मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटना हुई है। जहां पर लाचार बेटियों को अपने पिता का शव ट्राली (मालवाही रिक्शा) पर लाद अंत्येष्टि के लिए गांव ले जाना पड़ा। घटना मंगलवार की है। जिले के भुवन थाना इलाके में नीलकंठपुर गांव के 75 वर्षीय दयानिधि मलिक सोमवार से लापता थे। मंगलवार को उनका शव ब्राह्मणी नदी से बरामद किया गया। शव को पोस्टमार्टम के लिए भुवन अस्पताल लाया गया। जहां से शव को नीलकंठपुर गांव तक पहुंचाने के लिए महापरायण गाड़ी (शव वाहन) उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में शव को निजी एंबुलेंस से ही ले जाना संभव था। लेकिन दयानिधि के परिजनों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे पैसा खर्च कर निजी एंबुलेंस से शव अपने गांव ले जाते। उस समय उनकी दो बेटियां और रिश्तेदार मौके पर मौजूद थे। उन्होंने तय किया कि शव को ट्राली पर लादकर गांव ले चला जाए। इस तरह दयानिधि मलिक का शव ट्राली पर लादकर भुवन से पांच किमी दूर नीलकंठपुर गांव ले जाया गया।

सरकार की महाप्रयाण योजना पर प्रश्नचिह्न  ढेंकानाल जिले के भुवन अस्पताल से देश के सबसे कनिष्ठ शहीद की मान्यता पाने वाले बाजी राउत के गाव नीलकंठपुर की दो बेटियों द्वारा अपने पिता का शव ट्राली पर लाद कर ले जाने के लिए मजबूर होने की घटना ने न सिर्फ प्रशासन को शर्मसार किया है बल्कि प्रदेश सरकार की महाप्रयाण योजना पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है। राज्य सरकार ने अस्पताल से मृतकों का शव उनके गांव तक ले जाने के लिए महाप्रयाण नाम से शव वाहक गाड़ी की व्यवस्था की है। लेकिन नीलकंठपुर गांव के दयानिधि मलिक का शव गांव तक पहुंचाने के लिए उक्त वाहन नसीब नहीं हो सका। गौरतलब है कि नीलकंठपुर वह गांव है जहां 12 साल के बालक बाजी राउत ने अंग्रेजों को नदी पार कराने से मना कर दिया था और उनकी गोली का शिकार होकर शहीद हो गए थे।

इससे पूर्व भी हो चुकी हैं घटनाएं
1. दो अगस्त, 2018 को बौद्ध जिले के एक गांव में आर्थिक तंगी और सामाजिक बहिष्कार के चलते एक महिला का शव घंटों पड़ा रहा। बाद में महिला का जीजा उसके शव को अपनी साइकिल पर बांध कर अंत्येष्टि के लिए ले गया।

2. तीन अगस्त, 2018 को झारसुगुड़ा जिले में आर्थिक तंगी के चलते एक महिला का शव घंटों वहीं पड़ा रहा। बाद में इसकी जानकारी रेंगाली के विधायक रमेश पटुआ को हुई तो उन्होंने आगे बढ़कर महिला की अंत्येष्टि कराई।

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