Uttarakhand

लेखनी तय करे अपना कर्तव्य

आप एक पत्रकार है जिसकी लेखनी की एक ही स्याही से कल्पना के बहुत से भाव निकलते हैं। यह भाव आप स्वयं निर्माण नही करते बल्कि आपके आस पास का परिदृश्य और उसके प्रति आपका दृष्टिकोण ही आपको वाणी देता है जिसे आप की लेखनी कागज के टुकड़े पर
परदर्शित करती है। लेखनी कभी भक्ति तो कभी घृणा लिखती है तो कभी संरचना तो कभी विघटन की बात करती है। जोश में हो तो समाज को आह्वान करती है तो निराश होने पर हीन भावना को जन्म दे देती है। यही नही निराश होने पर कभी कभी विद्रोह भी  कर देती है। अब सब कुछ आप पर निर्भर करता है कि आप अपनी लेखनी से अपने परिदृश्य को कहां ले जाना चाहते हैं।
मैंने महसूस किया कि आप एक साथ कई परिस्थितियों से गुजर रहे है। एक और आप भारत को श्रेष्ठ और प्रगतिशील स्थान पर देख रहे हैं तो दूसरी औऱ उसकी समानता मुगल और कंपनी राज से कर रहे हैं। क्या आपको दोनों स्थितियों में कोई अंतर नजर नही आ रहा है? विकास तो उस समय भी हुआ था लेकिन उस समय की आवश्यकताओं और प्रणेता के अनुसार। उसके बाद भी विकास की प्रकिर्य्या समय की आवश्यकता के अनुरूप और हमारे प्रणेताओं के दिल और दिमाग से अलग स्वरूप में जारी रही जिसका जिक्र शायद आप खुले रूप से नही कर पा रहे है लेकिन आप सच कह रहे है।अब समय और विश्व के परिदृश्य की आवश्यकताए भिन्न हो गयी हैं। अब आपको प्राथमिक आवश्यकताओ से आगे बढ़कर कुछ और भी चाहिए। प्रणेता भी बदल गए हैं इसलिये विश्व भी बदल रहा है और आप इस परिदृश्य से बाहर कैसे रह सकते है? अब बात करते है बढ़ते टैक्सेज की तो आप जानते है कि विश्व की कोई सरकार ईश्वर नही होती कि जो चाहे सृजित कर दे। सबकुछ सामाजिक तानेबाने से चलता है जिसमे प्रत्येक सदस्य के सहयोग से भंडार बनता है जिससे राजा/ नेता / प्रबन्धक सभी कार्यो का निष्पादन सुनिश्चित करते है। इसी भंडार को सरकारे समय समय पर आवश्यकताओ के अनुरूप टैक्स के रूप में सहयोग से बढाने का प्रयास करती है। अब आपकी जितनी आवश्यकता बढ़ती जाएगी उसके लिये आवश्यक संसाधन और संसाधन जुटाने के लिये प्रयास तो बढ़ाने ही होंगे। रही बात मोदी जी की तो आप उंन्हे ईश्वर क्यों मान रहे है । विश्व की कौन सी व्यवश्था है जो जीरो डिफेक्ट है। दरसल जीरो डिफेक्ट के हर किसी सिद्धान्त में भी गलती के निश्चित हिस्से को मान्यता दी गयी है। अब भारत की इतनी बड़ी आर्थिकी को चलाने में भी बहुत से अनुमान, निर्णय ओर प्रकिर्या में कुछ त्रुटि हो सकती है इसका तात्पर्य सबकुछ गलत तो नही हो सकता। जरा सोचिए आज के विश्व संकट का सामना कितने देशों ने सफलतापूर्वक किया है शायद किसी ने नही। हर देश मे कोई न कोई प्रबंधन मे कमी रही है। इसलिये मोदी जी को दोष देना उचित नही है।
आप मानेंगे कि किसी भी आपदा से निपटने के लिए उस देश के साधनों के अतिरिक्त वहां के नागरिकों के आत्मबल और आपसी सहयोग की भावना महत्व पूर्ण होती है। भय के कारण इसमें तेजी सी कमी आती है और यही समय होता है जिम्मेदारी के परदर्शन का। घूमकर फिर अपनी पूर्व की बात पर आता हूं कि लेखनी आपके पास है  जैसा चाहें भाव उत्पन्न करें। किसी पर प्रश्न उठाना तो आसान है किसी को धक्का देकर गिराना भी आसान हो सकता है। किसी की आलोचना कर स्वयम को बुद्धिमान प्रदर्शित करना भी आसान है लेकिन किसी को उचित मार्ग दिखाना , गिरते को सहारा देना, किसी का मनोबल बढ़ाना अथवा किसी की प्रशंसा करना साधारण व्यक्ति नही कर सकता। पूरा परिदृश्य आपके सामने है, आपको अपनी भूमिका तय करनी है , अपने रास्ते को चुनना है। एक भारत वासी होने के नाते आपका क्या कर्तव्य होना चाहिये यह आपसे ज्यादा कोई निश्चित नही कर सकता। आप और हम तो निमित्त मात्र है किसी को दोष देने से वह दोषी हो जायेगा यह अपना भ्रम हो सकता है निर्णय या अंजाम नही।
लेखकः-ललित मोहन शर्मा

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