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आखिर आतंकी मसूद पर इस बार कैसे चीन ने टेक दिए घुटने, आपके लिए भी जानना जरूरी

नई दिल्‍ली । पाकिस्‍तान में बैठे आतंकी मसूद अजहर पर भारत को मिली बड़ी कामयाबी का श्रेय जहां एक ओर अमेरिका को जाता है तो वहीं चीन को भी जाता है। चीन को इसलिए क्‍योंकि वही एक मात्र देश ऐसा था जो पिछले चार बार से संयुक्‍त राष्‍ट्र में आतंकी मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने से वीटो लगाकर बचाता आ रहा था। लेकिन इस बार उसने ऐसा नहीं किया। लिहाजा यह सवाल उठना बेहद लाजिमी है कि ऐसा क्‍यों और कैसे हुआ।

ये है आतंकियों का सरगना 
इसका जवाब हमारे पास है। लेकिन, इससे पहले आपको ये बता दें कि 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आत्‍मघाती हमला हुआ था। इसमें 40 जवान शहीद हो गए थे। इसकी जिम्‍मेदारी जैश ए मुहम्‍मद ने ली थी। मसूद अजहर इसी आतंकी संगठन का आका है जो पाकिस्‍तान में बैठकर भारत में हमले का खाका तैयार करता है। इस आतंकी संगठन का मुख्‍यालय पाकिस्‍तान के बहावलपुर में है जो पाक मिलिट्री अकादमी से महज चंद कदमों की दूरी पर स्थित है। यह कॉम्‍प्‍लेक्‍स करीब 3 एकड़ में फैला है। मसूद खुद यहां से कुछ दूरी पर स्थित सुभान अल्‍लाह के नाम से बनी मस्जिद में रहता है। मसूद 1993 में हरकत उल अंसार आतंकी गुट का महासचिव रह चुका है।

मसूद की गिरफ्तारी 
मसूद को 1994 में कश्‍मीर में जाली पहचान और दस्‍तावेजों के आरोप में गिरफ्तार किया था। अजहर को भारत ने 31 दिसंबर 1999 को कंधार विमान अपहरण के दौरान बंधकों की सकुशल रिहाई के बदले में मजबूरन रिहा किया था। जैश ने भारत में कई बड़े आतंकी हमले करवाए हैं, जिसमें संसद पर हमला, मुंबई पर हमला, उरी में सेना के कैंप पर हमला, जम्‍मू कश्‍मीर विधानसभा पर हमला, मजार ए शरीफ में स्थित भारतीय दूतावास पर हमला, पठानकोट हमला शामिल है। भारत लगातार इस संगठन और इसके आका मसूद अजहर को संयुक्‍त राष्‍ट्र द्वारा वैश्विक आतंकी घोषित करने की कोशिश करता रहा है। पहले 2009, फिर अक्‍टूबर 2016, फरवरी 2017 और फिर मार्च 2019 में इस बाबत कोशिश की गई थी, लेकिन चीन के वीटो की वजह से यह संभव नहीं हो सका था।

इसलिए रोड़ा नहीं बना चीन 
अब आपको उन वजहों के बारे में बता देते हैं कि जिसकी वजह से चीन इस बार मसूद की राह में रोड़ा नहीं बना। दरअसल, इसी वर्ष मार्च में मसूद के खिलापाफ संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में लाए गए अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के प्रस्‍ताव संख्‍या 1267 को चीन ने तकनीकी खामियों बताकर वीटो के जरिए रोक दिया था। उस वक्‍त अमेरिका ने चीन को इस संबंध में सख्‍त हिदायत दी थी। अमेरिका की तरफ से यह साफ कर दिया गया था कि वह इस बाबत छह माह का इंतजार नहीं करेगा। अमेरिका का कहना था कि अभी लोहा गरम है, लिहाजा यह मौका किसी भी सूरत से हाथों से नहीं निकलना चाहिए। अमेरिका ने बेहद स्‍पष्‍ट शब्‍दों में चीन को अपनी मंशा जता दी थी।

यूं झुका चीन 

वहीं दूसरी तरफ भारत भी इस संबंध में लगातार चीन के अधिकारियों और सरकार से वार्ता की जा रही थी। इसको लेकर भारतीय विदेश सचिव ने अमेरिका, चीन और रूस की यात्रा की। यह भारत की कूटनीतिक चाल ही थी जिसके बाद चीन को इस बात का डर सताने लगा था कि यदि इस बार उसने पाकिस्‍तान का साथ दिया तो यकीनन वह विश्‍व मंच पर अलग-थलग पड़ जाएगा। तीन देशों के प्रस्‍ताव को अफ्रीकी देशों समेत यूरोपीय संघ, जापान, रूस और कनाडा का भी समर्थन हासिल था। इसके बाद भी चीन के कदम से पूरी दुनिया हैरान थी। चीन इस बात को भी समझ चुका था कि लगातार इस तरह के अडि़यल रवैये से वैश्विक मंच पर उसके खिलाफ माहौल बन रहा है, जिसको वह इस बार खत्‍म करना चाहता था। यहां पर आपको ये भी बता दें कि सिर्फ एक मसूद के मसले पर ही चीन ने भारत की राह में रोड़ा नहीं अटकाया है, बल्कि न्‍यूक्लियर सप्‍लाई ग्रुप में शामिल होने के मुद्दे पर भी चीन ने भारत के मंसूबों पर पानी फेर दिया था। यहां पर ये भी जानना जरूरी होगा कि बुधवार को हुई बैठक से पहले चीन की तरफ से इस तरह के संकेत दिए जा रहे थे वह भारत के पक्ष में निर्णय ले सकता है।

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