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आ‍खिरकार 26 साल बाद 15 साल के मासूम बेटे की हत्‍या करने वाले पुलिसकर्मियों को मां ने दिलाई सजा

मोहाली। 15 साल के मासूम बेटे की हत्‍या करने वाले पुलिसकर्मियों को मां ने 26 साल बाद आ‍खिरकार सजा दिलाई। ब्यास के इस किशाेर को टार्चर कर मारने के मामले में मोहाली की सीबीआइ कोर्ट ने पंजाब पुलिस के दो कर्मियों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। आरोप है कि पंजाब पुलिस ने अमृतसर जिले के ब्यास में कई युवकों का फेक एनकाउंटर किया था। बाद में अज्ञात लाशें बताकर खुद ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया। इसी में 15 साल का हरपाल सिंह भी शामिल था।

दो पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा, तीन को अदालत ने सुबूत के अभाव में बरी किया  बाद मेंं हरपाल सिंह की मां बलविंदर कौर ने याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए बुधवार को सीबीआइ कोर्ट ने पंजाब पुलिस के मुलाजिमों का सजर सुनाई। अदालत ने पुलिसकर्मी रघुबीर सिंह और दारा सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई। इस मामले में कुल आठ पुलिस मुलाजिम नामजद थे। इनमें से जसबीर सिंह, निर्मल जीत सिंह और परमजीत सिंह को अदालत ने सुबूतों की कमी के कारण बरी कर दिया। इसके अलावा हीरा सिंह, सविंदर पाल सिंह और राम लुभाया की केस के दौरान मौत हो चुकी है। पीड़ित परिवार की ओर से यह केस एडवोकेट सतनाम सिंह बैंस लड़ रहे थे। एडवोकेट सतनाम सिंह बैंस ने बताया कि सीबीआइ ने चार्जशीट तो काफी पहले ही दायर कर दी थी, लेकिन फैसला आने में समय लगा। बैंस ने बताया कि एनकाउंटर के बाद पुलिस मुलाजिमों ने अपनी कहानी बनाई थी।

मां की शिकायत पर मामला हुआ था दर्ज  हरपाल की मौत के बाद मां बलविंदर कौर ने शिकायत की। जांच हुई और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ को फेक एनकाउंटर के बाद अज्ञात बताकर शव का अंतिम संस्कार करने के सभी मामलों की दोबारा जांच के आदेश दिए। इसके बाद चंडीगढ़ सीबीआइ की टीम ने जांच दोबारा शुरू की।

अपनी कहानी में उलझी पुलिस  पुलिस का कहना था कि एनकाउंटर के समय 217 गोलियां चली थी, लेकिन वह कोर्ट में रिकवरी नहीं दिखा पाए और न ही सुबूत पेश कर सके। बाद में पुलिस ने एक और कहानी बनाई कि हरपाल का साथी बच निकला था, लेकिन 16 दिन बाद उसका भी एनकाउंटर हो गया। मरने वाला युवक कपूरथला का था। पुलिस यह नहीं बता पाई कि 16 दिन बाद वह दोबारा निज्जर क्यों आया था। वहीं, हरपाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसके सिर पर दो गोलियां लगी थी जोकि तीन मीटर की दूरी से मारी गई थी। पुलिस ने 217 गोलियां चलने की बात कही थी। ऐसे में वे अन्य गोलियों का हिसाब नहीं दे पाए।

1992 में हरपाल को घर से उठा टॉर्चर कर मार डाला  यह मामला 1992 का है। तत्कालीन एसएचओ रणधीर के नेतृत्‍व में पुलिस दल ने 15 साल के हरपाल सिंह को घर से उठा लिया। आरोप है उसे चार दिन हवालात में टॉर्चर दिया गया और बाद में गांव निज्जर के पास उसका फर्जी एनकाउंटर कर दिया गया। यही नहीं पुलिस ने हरपाल का शव भी परिजनों को नहीं होने दिया। उन्होंने हरपाल को अज्ञात बताकर उसके शव का खुद ही अंतिम संस्कार कर दिया।आरोप है कि उस दौरान इन पुलिस मुलाजिमों ने और भी कई फर्जी एनकाउंटर किए थे।

परिवार ने कहा, 26 साल बाद मिला इंसाफ  वहीं, हरपाल के परिजनों ने कहा कि 26 साल बाद उनके परिवार को इंसाफ मिला है। परिवार के सदस्यों ने कहा कि उन्हें इस बात का दुख है कि वह मरने के बाद अपने बच्चे का अंतिम बार मुंह भी नहीं देख सके।

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