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जड़ी-बूटियों के निर्यात पर ध्यान दे उत्तराखंड सरकारः डा. महेंद्र राणा  

हरिद्वार। भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड के बोर्ड सदस्य डा. महेंद्र राणा ने उत्तराखंड सरकार को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि जड़ी-बूटी निर्यात क्षेत्र (एचईजेड) और जड़ी-बूटियों की खेती के लिहाज से उत्तराखंड एक प्रमुख केंद्र बन सकता है और यह राज्य भारत के हर्बल उद्योग को गति देने में अहम भूमिका निभा सकता है। डा. राणा के अनुसार वाणिज्य एवं उद्योग संगठन (एसोचैम) की नई रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तराखंड भारत में जड़ी-बूटी उद्योग के सालाना कारोबार को 2010 तक 16,000 करोड़ रुपये तक पहुंचाने में बेहद मददगार साबित हो सकता है।
उनके मुताबिक अभी भारत के जड़ी-बूटी उद्योग का सालाना कारोबार 12,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का है। पत्र में यह भी बताया गया है कि राज्य में जड़ी-बूटी निर्यात क्षेत्र और जड़ी-बूटियों की खेती को बढ़ावा देने से राज्य के 1.20 लाख लोगों को रोजगार मिल सकेगा। डा. राणा ने राज्य सरकार से मांग की है कि हर्बल इकोनोमिक जोन(एच ई जेड )और हर्बल खेती के लिए बनाए जाने वाले विशेष क्षेत्रों को टैक्स छूट, आसान कर्ज, सस्ती दर पर जमीन, पानी और बिजली जैसी सुविधाएं दी जाएं।राज्य सरकार को यह सुझाव भीदिया गया है कि गोपेश्वर के जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान की तरह उत्तराखंड में दो-तीन और जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान स्थापित किए जाने बेहद जरूरी हैं। उत्तराखंड में 170 ऐसे पौधे पाए जाते हैं जिनका किसी न किसी रूप में दवाई बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। राज्य में पैदा होने वाले कई तरह के फलों को देखते हुए यहां बागवानी की भी अच्छी संभावना है।डा. राणा के मुताबिक जड़ी-बूटियों से बनी दवाओं की मांग दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है ,इन दवाओं का उत्पादन कई गुना बढ़ने की संभावना है।फिलहाल देश में 1,650 दवाइयां उपलब्ध हैं। इन्हें बनाने में कुल मिलाकर 540 जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाले पौधों के उत्पादन में बढ़ोतरी के मकसद से राज्य सरकार को किसानों के बीच प्रशिक्षण शिविर आयोजित करना चाहिए।यदि सरकार इस क्षेत्र में गम्भीरता से ध्यान देती है तो वर्तमान कोरोना संक्रमण की वजह से उत्तराखंड वापिस लौटे प्रवासी युवाओं के लिए भी जड़ी बूटी उत्पादन एवं निर्यात,रोजगार का एक मजबूत विकल्प साबित हो सकता है ।

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