उत्तरप्रदेश

उत्तर प्रदेश सरकार ने बंद पड़े कोल्हू व क्रेशर को पुनः चलाने का लिया फैसला, टूटेगा चीनी मिलों का दबदबा

मुरादाबाद । शासन ने कोल्हू और क्रेशर चलाने का फैसला लेकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। चीनी मिलों का दबदबा तोडऩे के साथ इससे गांवों में रोजगार भी बढ़ेंगे। दरअसल, गन्ने की खेती किसानों को मजा देने के बजाय भुगतान नहीं मिलने के कारण सजा बनती जा रही है। गन्ने के दम पर खड़ा चीनी उद्योग किसानों की उपेक्षा कर रहा है। मंडल में 71 हजार हेक्टेयर गन्ना क्षेत्र बढऩे से समस्या में और भी इजाफा होने की आशंका भी थी। बकौल, उप गन्ना आयुक्त राजेश मिश्र-सरकार ने गन्ने की खपत के मद्देनजर गुड़ व खांडसारी उद्योग को मजबूत करने के लिए नियम व शर्तों को आसान बनाया है। इसके तहत बंद पड़े कोल्हू व क्रेशर को फिर से शुरू कराया जाएगा। उनका मानना है कि गन्ना किसानों के पास अपनी उपज को चीनी मिलों के देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, जिसके तहत पेराई सत्र के अंत में किसानों का भारी बकाया चीनी उद्योग पर हो जाता है। यही समस्या किसानों के संग चीनी मिल मालिकान को भी है। इस फैसले से किसानों को राहत मिलेगी।

चीनी मिलों का दबदबा तोड़ेंगे  सूबे की सरकार ने चीनी मिलों का दबाव तोडऩे के लिए गुड़ व खांडसारी उद्योग को फिर से खड़ा करने का मंसूबा बनाया है। चालू पेराई सत्र में पंजीकृत सभी कोल्हू व क्रेशर को चलवाया जाएगा ताकि किसानों का गन्ना खेत में खड़ा न रह जाए।

उद्यमिता को मिलेगा बढ़ावा  अधिकांश कोल्हू व क्रेशर बंद थे। चालू पेराई सत्र में इन सभी को चालू कराया जाएगा। योजना से उद्यमिता को बढ़ावा तो मिलेगा ही रोजगार के अवसर और ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को भी पंख लगेंगे। सरकार द्वारा कोल्हू संचालन का जो निर्णय लिया गया है वह वाकई सराहनीय है। ग्रामीण लोगों को इससे रोजगार मिलेगा और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। ग्रामीणों के विकास से ही सरकार द्वारा देखा गया विकास का सपना भी साकार होगा।

55 हजार क्विंटल गन्ने की पेराई होगी रोज  इनके चालू मंडल में कमोबेश 11 सौ कोल्हू व क्रेशर हैं। कोल्हू कमोबेश आठ क्विंटल व क्रेशर लगभग 80 क्विंटल गन्ने की रोजमर्रा पेराई करते हैं। औसतन 50 से 55 हजार क्विंटल गन्ने की पेराई रोजमर्रा होगी। इनके चालू होने से गन्ना किसानों की समस्या में कमी आएगी।

किसानों को मिलेगा लाभ  खास बात यह है कि किसान व चीनी मिल मालिकान अपने उत्पाद का लाभकारी मूल्य मिलने की आस में रहते है। बेचने के बाद किसान गन्ना भूल जाते हैं और मिल मालिकान चीनी। यही समस्या की असली जड़ है। उत्पादित चीनी का 30 फीसद घरेलू एवं 70 फीसद व्यवसायिक उपयोग होता है। यह समझ विकसित होते ही समस्या का इलाज निकल आएगा।

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