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अपोलो कैंसर सेंटरों ने 8 कैंसर पीड़ितों को 11,830 फीट की ऊंचाई फतह करने में समर्थ बनाया

देहरादून। देश के विभिन्न हिस्सों के आठ कैंसर पीड़ितों ने 4 जून को 11,830 फीट की ऊंचाई पर चढ़ाई करने के लिए हरे-भरे घास के मैदानों और समृद्ध प्राकृतिक छटा के साथ यात्रा करते हुए देहरादून से उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के दयारा बुग्याल की रोमांचक यात्रा के लिए प्रस्थान किया। भारत का सर्वश्रेष्ठ कैंसर अस्पताल और विश्व के सर्वाेत्तम में से एक अपोलो कैंसर सेंटर की एक पहल-‘शिखर से शिखर तक कैंसर पर विजय’ में जीवन के लिए अटूट जुनून और उत्साह से प्रेरित, उन लोगों ने भागीदारी की। कैंसर पीड़ितों के साथ पांच दिनों की पैदल यात्रा कैंसर पीड़ितों के इलाज के बाद सही जानकारी और विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में सकारात्मक जीवन के बारे में जागरूकता फैलाने के विचार पर केन्द्रित थी।
अपोलो कैंसर सेंटर के आदर्श वाक्य दृ ‘कैंसर पर विजय’ पर केन्द्रित इस कार्यक्रम का आयोजन न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी कैंसर पर विजय प्राप्त करने के तथ्य पर जोर देने के लिए किया गया था। सबसे कम उम्र की पीड़ित 24 साल की महिला से लेकर सत्तर साल की सबसे वृद्ध इस कार्यक्रम की प्रतिभागी थी; कैंसर से बचे इन लोगों ने न केवल कैंसर के भय पर विजय प्राप्त की है बल्कि इससे आगे भी निकल गये हैं।
इस यात्रा वृत्तान्त को अपोलो कैंसर सेंटर से साझा करते हुए, पुणे निवासी और कैंसर पीड़ित सुश्रुत करपे ने बताया, “मैं एक जोशीला फोटोग्राफर हूँ, मेरे काम को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है. मैं एक प्रसिद्द बहुदेशीय कंपनी में डिजाईन प्रमुख के पद पर काम करता हूँ. 26 साल की उम्र में मेरी सगाई के ठीक बाद मुझे पेट के कैंसर का पता चला था. अपोलो में आने के पहले मैंने 10 डॉक्टरों से परामर्श किया था. अपोलो कैंसर सेंटर के डॉक्टरों ने मुझमें आवश्यक विश्वास पैदा किया. मेरी जिंदगी थम गयी थी, घूमने की सारी योजनाएं और शादी सहित दूसरी चीजें स्थगित करते हुए मैं पूरे साल भर इलाजरत रहा. इलाज के दौरान मैं जीवन के एक अलग दृष्टिकोण से रुबरु हुआ क्योंकि मैंने सही समय या सही क्षण की प्रतीक्षा करनी बंद कर दी थी. मैंने खुद से वादा किया था, कि अब से मैं जब चाहूं अपना पल खुद ही बना लूंगा। इसके कारण कई चीजों के बारे में मेरी सोच सकारात्मक हो गयी और जीवन के सभी संभव पहलु के प्रति इसने मुझे आशावादी बना दिया. इसी के कारण मैंने कैंसर से लड़ने वाले उन सभी योद्धाओं के लिए एक उदाहरण बनने का फैसला लिया. कैंसर से पीड़ित होने का विचार कैंसर होने से ज्यादा घातक है. सर्वप्रथम, आपको कैंसर को दिमागी रूप से हराने की आवश्यकता है, तत्पश्चात शारीरिक रूप से भुवनेश्वर निवासी और कैंसर पीड़िता स्वागतिका आचार्य ने अपोलो कैंसर सेंटर के साथ अपनी यात्रा को साझा करते हुए बताया, “हम हमेशा ये सोचते हैं कि समस्याएं हमसे ज्यादा बड़ी हैं लेकिन जब हम साहस करते हैं, हम अपनी समस्याओं से ज्यादा बड़े हो जाते हैं. मैं हमेशा से साहसिक यात्राओं के प्रति बेहद उत्साहित रही हूँ और दयारु बुग्याल की इस कठिन यात्रा के बाद मैं यह महसूस करती हूँ कि कैंसर हमारी जिंदगी का मात्र एक हिस्सा है और इसके बाद खोज करने के लिए बहुत कुछ है।

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