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उत्तराखंड में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के लिए लोकसभा चुनावों में आसान नहीं होगी राह

देहरादून। लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के लिए उत्तराखंड में चुनावी राह आसान नहीं है। कारण यहां मुकाबला मुख्यतया भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होता रहा है लेकिन हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर जैसे दो मैदानी भूगोल के जिलों में सपा व बसपा का भी ठीकठाक जनाधार है। ऐसे में उत्तर प्रदेश की भांति यदि यह दोनों दल एक साथ होकर चुनाव लड़ते हैं तो भी उनके लिए राह आसान नहीं होगी क्योंकि कांग्रेस व सपा-बसपा का वोट बैंक काफी हद तक एक सा ही है। राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड में मुख्य मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच ही रहा है लेकिन बसपा प्रदेश की तीसरी बड़ी राजनैतिक पार्टी के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है। हालांकि, बसपा का प्रदर्शन लगातार गिर रहा है।

राज्य गठन से पहले की बात करें तो अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौरान इस क्षेत्र में सपा की अच्छी खासी पैठ रही तब तक बसपा यहां अस्तित्व में ही नहीं थी। वर्ष 1996 के विधानसभा चुनावों में सपा ने इस क्षेत्र की तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी। वह भी तब जब उत्तराखंड आंदोलन अपने चरम पर था और तब सपा की छवि खलनायक सी थी। राज्य गठन के बाद जब उत्तराखंड में अंतरिम विधानसभा का गठन किया गया इसमें सपा के तीन सदस्य शामिल थे। हालांकि इसके बाद सपा उत्तराखंड में हाशिए पर ही जाती रही। हालांकि 2004  के लोकसभा चुनावों में हरिद्वार सीट सपा के खाते में आई यह सपा की उत्तराखंड राज्य में एकमात्र उपलब्धि है। अभी तक हुए चार विधानसभा चुनावों में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली है। स्थिति यह है कि सपा को वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में महज 0.40  प्रतिशत मत ही मिल पाए हैं। बात करें बसपा की तो यह दल राज्य बनने के बाद तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में उभरा है। वर्ष 2017 से पहले हुए तीन विधानसभा चुनावों में बसपा ने लगातार विधानसभा में दस्तक दी है। पहले विधानसभा चुनाव यानी वर्ष 2002 में बसपा ने 10.93 मत प्रतिशत लेकर सात सीटों पर कब्जा जमाया था। दूसरे विधानसभा यानी वर्ष 2007 के  चुनाव में बसपा ने 11.76 फीसद मतप्रतिशत के साथ आठ सीटें कब्जाई। 2012 में बसपा का मत प्रतिशत तो बढ़ कर 12.19 प्रतिशत तक पहुंचा लेकिन सीटों की संख्या घट कर तीन तक पहुंच गई। वहीं बीते विधानसभा चुनावों में बसपा को केवल 6.98 प्रतिशत मत मिले और उसकी झोली खाली रही। अहम यह कि बसपा ने 2017 से पहले जो भी सीटें जीतीं वह मैदानी जिलों तक सिमटी रहीं थीं। सपा और बसपा के उत्तराखंड में अब तक के चुनावी प्रदर्शन से प्रदेश में इनकी राह आसान नहीं नजर आ रही है। अगर ये दोनों अपने गठबंधन को उत्तराखंड में भी आजमाती हैं तो भी बहुत अधिक उम्मीदें नजर नहीं आ रही हैं। हालांकि, दोनों दल प्रदेश की मैदानी माने जाने वाली हरिद्वार व नैनीताल संसदीय सीट पर भाजपा व कांग्रेस के समीकरण को बदल सकती हैं।

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